राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) एक हिंदू राष्ट्रवादी संघटन है जिसके सिद्धांत हिंदुत्व मे निहित और आधारित हैं। यह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अपेक्षा संघ या आर एस एस नाम से अधिक प्रसिद्ध है। इसकी शुरुआत 1925 में डा. केशव हेडगेवार द्वारा की गयी थी । बीबीसी के अनुसार, संघ विश्व का सबसे बड़ा स्वयंसेवी संस्थान है. 1925 के बाद से धीरे-धीरे इस संस्थान का राजनैतिक महत्व बढता गया और इसकी परिणति भाजपा जैसे राजनैतिक दल के रूप में हुई जिसे आमतौर पर संघ की राजनैतिक शाखा के रूप में देखा जाता है जो भारत के केन्द्रीय सत्ता पर अन्तत: सन 2000 में आसीन हुई।
संघ में संगठनात्मक रूप से सबसे ऊपर सरसंघ चालक का स्थान होता है जो पूरे संघ का दिशा-निर्देशन करते हैं। सरसंघचालक की नियुक्ति मनोनयन द्वारा होती है। हर सरसंघचालक अपने उत्तराधिकारी की घोषणा करता है। संघ के वर्तमान सरसंघचालक श्री मोहन भागवत हैं। संघ के ज्यादातर कार्यों का निष्पादन शाखाओं द्वारा होता है, जिसमें सार्वजनिक स्थानों पर सुबह या शाम के समय एक से दो घंटे के लिये स्वयंसेवकों का परस्पर मिलन होता है। वर्तमान में पूरे भारत में संघ की लगभग पचास हजार से ज्यादा शाखाएँ लगती हैं। ये शाखाएँ संघ की बुनियाद होती है। सामान्यतया शाखा की गतिविधियों में खेल, योग वंदना और भारत एवं विश्व की साँस्कृतिक पहलुओं पर बौद्धिक चर्चा-परिचर्चा शामिल है।
शाखा किसी मैदान या खुली जगह पर आधा / एक / दो घंटे की लगती है . शाखा में खेल, सूर्य नमस्कार, समता (परेड), गीत और प्रार्थना होती है. साधारनतया शाखा एक घंटे की व रोज लगती है.
सुबह लगने वाली शाखा को प्रभात शाखा कहते है.
शाम को लगने वाली शाखा को सायं शाखा कहते है.
रात्रि को लगने वाली शाखा को रात्रि शाखा कहते है.
सप्ताह में एक या दो बार लगने वाली शाखा को मिलन कहते है.
महीने में एक या दो बार लगने वाली शाखा को संघ मण्डली कहते है.
पुरे भारत में अनुमानित रूप से ५०,००० शाखाएं लगती है. विश्व के अन्य देशों में भी शाखाओं का कार्य चलता है, पर यह कार्य राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ नाम से नहीं चलता है. कही पर भारतीय स्वयंसेवक संघ तो कही हिन्दू स्वयंसेवक संघ के माध्यम से चलता है.
शाखा में कार्यवाह का पद सबसे बड़ा होता है. उसके बाद शाखाओं का दैनिंक कार्य सुचारू रूप से चलने के लिए मुख्य शिक्षक का पद होता है. शाखा में बोद्धिक व शारीरिक क्रियाओं के साथ स्वयमसेवकों का पूर्ण विकास किया जाता है.
हर सदस्य जो शाखा में आता है, वह स्वयंसेवक कहलाता है.
महात्मा गाँधी की मुस्लिम तुष्टीकरण नीति से क्षुब्ध होकर 1948 में नाथूराम गोडसे द्वारा उनकी हत्या करने के बाद संघ पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। गोडसे संघ और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के एक भूतपूर्व स्वयंसेवक थे। बाद में एक जाँच समिति की जाँच के बाद संघ को इस आरोप से बरी कर दिया गया और प्रतिबंध समाप्त कर दिया गया।
संघ के आलोचकों के द्वारा संघ को एक अतिवादी दक्षिणपंथी संगठन बताया जाता रहा है एवं हिंदूवादी और फ़ासीवादी संगठन के तौर पर संघ की आलोचना की जाती रही है। जबकि संघ के स्वयंसेवकों का कहना है कि सरकार एवं देश की अधिकांश पार्टियाँ अल्पसंख्यक- तुष्टीकरण में लिप्त रहती हैं। उदाहरणार्थ- विवादास्पद शाहबानो प्रकरण एवं हज यात्रा में दी जानेवाली सब्सिडी इत्यादि की नीति समाप्त करे।
संघ का यह मानना है कि ऐतिहासिक रूप से हिंदू स्वदेश में ही हमेशा से उपेक्षित और उत्पीड़ित रहे हैं और हम सिर्फ़ हिंदुओं के जायज अधिकारों की बात करते हैं। आलोचकों का कहना है कि ऐसे विचारों एवं प्रचारों से भारत का धर्मनिरपेक्ष बुनियाद कमज़ोर होता है। इस क्रम में सबसे विवादास्पद और चर्चित मामला अयोध्या विवाद रहा है जिसमें बाबर द्वारा सोलहवीं सदी में निर्मित एक ढाँचा विवादित ढाँचा के स्थान पर राम मंदिर का निर्माण करना है। अधिकांश हिंदुओं का ऐसा मानना है कि यहीं भगवान राम की पैदाईश हुई थी।
संघ की उपस्थिति भारतीय समाज के हर क्षेत्र में महसूस की जा सकती है जिसकी शुरुआत 1925 से होती है। उदाहरण के तौर पर 1962 के भारत-चीन युद्ध में प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू संघ की भूमिका से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने संघ को गणतंत्र दिवस के 1963 के परेड में सम्मिलित होने का निमन्त्रण दिया। सिर्फ़ दो दिनों की पूर्व सूचना पर तीन हजार से भी ज्यादा स्वयंसेवक पूर्ण गणवेश में वहाँ उपस्थित हो गये।
वर्तमान समय में संघ के दर्शन का पालन करने वाले कतिपय लोग देश के सर्वोच्च पदों तक पहुँचने मे भीं सफल रहे हैं। ऐसे प्रमुख व्यक्तियों में उपराष्ट्रपति पद पर भैरोसिंह शेखावत, प्रधानमंत्री पद पर अटल बिहारी वाजपेयी एवं उपप्रधानमंत्री व गृहमंत्री के पद पर लालकृष्ण आडवाणी जैसे लोग शामिल हैं।
संघ के सरसं
संघ में संगठनात्मक रूप से सबसे ऊपर सरसंघ चालक का स्थान होता है जो पूरे संघ का दिशा-निर्देशन करते हैं। सरसंघचालक की नियुक्ति मनोनयन द्वारा होती है। हर सरसंघचालक अपने उत्तराधिकारी की घोषणा करता है। संघ के वर्तमान सरसंघचालक श्री मोहन भागवत हैं। संघ के ज्यादातर कार्यों का निष्पादन शाखाओं द्वारा होता है, जिसमें सार्वजनिक स्थानों पर सुबह या शाम के समय एक से दो घंटे के लिये स्वयंसेवकों का परस्पर मिलन होता है। वर्तमान में पूरे भारत में संघ की लगभग पचास हजार से ज्यादा शाखाएँ लगती हैं। ये शाखाएँ संघ की बुनियाद होती है। सामान्यतया शाखा की गतिविधियों में खेल, योग वंदना और भारत एवं विश्व की साँस्कृतिक पहलुओं पर बौद्धिक चर्चा-परिचर्चा शामिल है।
शाखा किसी मैदान या खुली जगह पर आधा / एक / दो घंटे की लगती है . शाखा में खेल, सूर्य नमस्कार, समता (परेड), गीत और प्रार्थना होती है. साधारनतया शाखा एक घंटे की व रोज लगती है.
सुबह लगने वाली शाखा को प्रभात शाखा कहते है.
शाम को लगने वाली शाखा को सायं शाखा कहते है.
रात्रि को लगने वाली शाखा को रात्रि शाखा कहते है.
सप्ताह में एक या दो बार लगने वाली शाखा को मिलन कहते है.
महीने में एक या दो बार लगने वाली शाखा को संघ मण्डली कहते है.
पुरे भारत में अनुमानित रूप से ५०,००० शाखाएं लगती है. विश्व के अन्य देशों में भी शाखाओं का कार्य चलता है, पर यह कार्य राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ नाम से नहीं चलता है. कही पर भारतीय स्वयंसेवक संघ तो कही हिन्दू स्वयंसेवक संघ के माध्यम से चलता है.
शाखा में कार्यवाह का पद सबसे बड़ा होता है. उसके बाद शाखाओं का दैनिंक कार्य सुचारू रूप से चलने के लिए मुख्य शिक्षक का पद होता है. शाखा में बोद्धिक व शारीरिक क्रियाओं के साथ स्वयमसेवकों का पूर्ण विकास किया जाता है.
हर सदस्य जो शाखा में आता है, वह स्वयंसेवक कहलाता है.
महात्मा गाँधी की मुस्लिम तुष्टीकरण नीति से क्षुब्ध होकर 1948 में नाथूराम गोडसे द्वारा उनकी हत्या करने के बाद संघ पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। गोडसे संघ और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के एक भूतपूर्व स्वयंसेवक थे। बाद में एक जाँच समिति की जाँच के बाद संघ को इस आरोप से बरी कर दिया गया और प्रतिबंध समाप्त कर दिया गया।
संघ के आलोचकों के द्वारा संघ को एक अतिवादी दक्षिणपंथी संगठन बताया जाता रहा है एवं हिंदूवादी और फ़ासीवादी संगठन के तौर पर संघ की आलोचना की जाती रही है। जबकि संघ के स्वयंसेवकों का कहना है कि सरकार एवं देश की अधिकांश पार्टियाँ अल्पसंख्यक- तुष्टीकरण में लिप्त रहती हैं। उदाहरणार्थ- विवादास्पद शाहबानो प्रकरण एवं हज यात्रा में दी जानेवाली सब्सिडी इत्यादि की नीति समाप्त करे।
संघ का यह मानना है कि ऐतिहासिक रूप से हिंदू स्वदेश में ही हमेशा से उपेक्षित और उत्पीड़ित रहे हैं और हम सिर्फ़ हिंदुओं के जायज अधिकारों की बात करते हैं। आलोचकों का कहना है कि ऐसे विचारों एवं प्रचारों से भारत का धर्मनिरपेक्ष बुनियाद कमज़ोर होता है। इस क्रम में सबसे विवादास्पद और चर्चित मामला अयोध्या विवाद रहा है जिसमें बाबर द्वारा सोलहवीं सदी में निर्मित एक ढाँचा विवादित ढाँचा के स्थान पर राम मंदिर का निर्माण करना है। अधिकांश हिंदुओं का ऐसा मानना है कि यहीं भगवान राम की पैदाईश हुई थी।
संघ की उपस्थिति भारतीय समाज के हर क्षेत्र में महसूस की जा सकती है जिसकी शुरुआत 1925 से होती है। उदाहरण के तौर पर 1962 के भारत-चीन युद्ध में प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू संघ की भूमिका से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने संघ को गणतंत्र दिवस के 1963 के परेड में सम्मिलित होने का निमन्त्रण दिया। सिर्फ़ दो दिनों की पूर्व सूचना पर तीन हजार से भी ज्यादा स्वयंसेवक पूर्ण गणवेश में वहाँ उपस्थित हो गये।
वर्तमान समय में संघ के दर्शन का पालन करने वाले कतिपय लोग देश के सर्वोच्च पदों तक पहुँचने मे भीं सफल रहे हैं। ऐसे प्रमुख व्यक्तियों में उपराष्ट्रपति पद पर भैरोसिंह शेखावत, प्रधानमंत्री पद पर अटल बिहारी वाजपेयी एवं उपप्रधानमंत्री व गृहमंत्री के पद पर लालकृष्ण आडवाणी जैसे लोग शामिल हैं।
संघ के सरसं
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